प्रथम संभोग...
स्त्री का पूरा भविष्य उसके प्रथम काम अनुभव के प्रति हुई प्रतिक्रिया से अत्यधिक प्रभावित होता है। मनोचिकित्सकों ने स्त्री के प्रथम काम अनुभव पर विशेष जोर दिया है।
स्त्री के लिए सेक्स एक जटिल अनुभव
सेक्सजनित अनुभव स्त्रियों की जटिल स्थिति प्रतिबिंबित करते हैं। स्त्री अपने व्यक्तिगत जीवन में अपनी जाति विशेष की प्रबल इच्छाओं को व्यक्त नहीं कर सकती। वह तो अन्य जाति (पुरुष) के हाथों शिकार होती रहती है। उस जाति विशेष की रुचियां स्त्री की रुचियों से नितांत भिन्न होती हैं। अन्य प्राणियों की अपेक्षा मानव जाति की स्त्री में यह अंतर अधिक होता है।
सेक्सजनित अनुभव स्त्रियों की जटिल स्थिति प्रतिबिंबित करते हैं। स्त्री अपने व्यक्तिगत जीवन में अपनी जाति विशेष की प्रबल इच्छाओं को व्यक्त नहीं कर सकती। वह तो अन्य जाति (पुरुष) के हाथों शिकार होती रहती है। उस जाति विशेष की रुचियां स्त्री की रुचियों से नितांत भिन्न होती हैं। अन्य प्राणियों की अपेक्षा मानव जाति की स्त्री में यह अंतर अधिक होता है।
वैजाइना व क्लाइटोरिस में अंतर से पैदा होता है द्वंद्व
योनि (वैजाइना) और भगशिश्न (क्लाइटोरिस) में असमानता के कारण यह अंतर स्पष्ट दिखाई पड़ता है। बचपन में भगशिश्न ही स्त्री की काम इच्छा का केंद्र होता है। कुछ मनोचिकित्सकों का कहना है कि बचपन से ही कुछ लड़कियों में यौन संवेदनशीलता रहती है। यह एक गौण विवादास्पद विषय है।
स्त्री कामोत्तेजना का केंद्र भगशिश्न
भगशिश्न की बनावट बचपन से बालिग होने तक एक-सी रहती है। भगशिश्न द्वारा स्त्री की कामोत्तेजना पुरुष की कामोत्तेजना की ही तरह बहुत कुछ यांत्रिक ढंग से घटित होती है। परोक्ष रूप से यह स्वाभाविक रतिक्रिया से संबंधित होती है। इसका जनन क्रिया से कोई संबंध नहीं होता है।
भगशिश्न की बनावट बचपन से बालिग होने तक एक-सी रहती है। भगशिश्न द्वारा स्त्री की कामोत्तेजना पुरुष की कामोत्तेजना की ही तरह बहुत कुछ यांत्रिक ढंग से घटित होती है। परोक्ष रूप से यह स्वाभाविक रतिक्रिया से संबंधित होती है। इसका जनन क्रिया से कोई संबंध नहीं होता है।
पुरुष के हस्तक्षेप से योनि बनता है काम केंद्र
योनिद्वार द्वारा ही पुरुष स्त्री में प्रवेश करता है और उसकी जनन शक्ति को सक्रिय करता है। पुरुष के हस्तक्षेप द्वारा ही मानो योनि काम उद्विग्नता का केंद्र बनता है। इस क्रिया को एक रूप में सीमा भंग भी कह सकते हैं। प्राचीन काल में वास्तविक व बनावटी बलात्कार द्वारा ही स्त्री को उसकी बचपन की दुनिया से दूर कर पत्नी की भूमिका में ढाला जाता था। वास्तव में यह एक तरह का बलप्रयोग है जो एक लड़की को औरत में परिवर्तित कर देता है। आज भी कुछ ऐसे ही शब्दों, जैसे- कौमार्य भंग करना, कन्या के कौमार्य को दूर करना आदि का प्रयोग होता है।
योनि स्राव से मिलती है यौन तृप्ति
किनसे की रिपोर्ट के अनुसार, शरीर रचना और चिकित्सा संबंधी अनेक प्रमाणों के अनुसार योनि के भीतरी भाग में शिराएं नहीं होती। बिना 'शून्य' किए योनि में शल्य क्रिया की जा सकती है। भगशिश्न में भीतरी आधार के पास योनि में कुछ शिराएं होती हैं।
किनसे की रिपोर्ट के अनुसार, शरीर रचना और चिकित्सा संबंधी अनेक प्रमाणों के अनुसार योनि के भीतरी भाग में शिराएं नहीं होती। बिना 'शून्य' किए योनि में शल्य क्रिया की जा सकती है। भगशिश्न में भीतरी आधार के पास योनि में कुछ शिराएं होती हैं।
बिना उस क्षेत्र (भगशिश्न) को उत्तेजित किए ही स्त्री को अपनी योनि में किसी वस्तु (पुरुष लिंग) के प्रवेश का अनुभव होता है, खासकर तब जब योनि की मांसलता कस जाती है। परंतु स्त्री को यौन तृप्ति योनि के स्राव होने से ही होती है, काम शिराओं की संवेदनशीलता से नहीं।
स्त्रियों को हस्तमैथुन से मिलती है तृप्ति
इसमें शक नहीं कि योनि रति आनंद का स्थान है। स्त्रियां भी हस्तमैथुन करती हैं क्योंकि इससे उन्हें तृप्ति मिलती है।
इसमें शक नहीं कि योनि रति आनंद का स्थान है। स्त्रियां भी हस्तमैथुन करती हैं क्योंकि इससे उन्हें तृप्ति मिलती है।
संपूर्ण नाड़ी मंडल से संबंधित है यौन क्रिया
यौन प्रक्रिया बड़ी ही जटिल है क्योंकि वह केवल शारीरिक और मानसिक अवस्थाओं पर ही आधारित नहीं है, बल्कि इससे पूरा नाड़ी मंडल संबंधित रहता है और व्यक्ति विशेष की संपूर्ण आनुभाविक स्थिति का भी प्रभाव पड़ता है।
प्रथम संभोग से शुरू होता है काम क्रिया का नया सिलसिला
प्रथम संभोग के बाद काम क्रिया का नया सिलिसिला प्रारंभ होता है। यह सिलसिला नए सिरे से नाड़ी मंडल को व्यवस्थित करना चाहता है। बचपन के काम केंद्र स्त्री के भगशिश्न को उत्तेजिक करने में कभी-कभी समय लगता है और यह भी संभव है कि इसे सफलतापूर्वक कभी भी उत्तेजित किया ही न जा सके।
प्रथम संभोग के बाद काम क्रिया का नया सिलिसिला प्रारंभ होता है। यह सिलसिला नए सिरे से नाड़ी मंडल को व्यवस्थित करना चाहता है। बचपन के काम केंद्र स्त्री के भगशिश्न को उत्तेजिक करने में कभी-कभी समय लगता है और यह भी संभव है कि इसे सफलतापूर्वक कभी भी उत्तेजित किया ही न जा सके।
स्त्री दो तरीकों में से करती है अपनी पसंद का चुनाव
स्त्रियां दो तरीकों के बीच अपनी पसंद चुनती है। एक के अनुसार, स्त्री अपनी किशोर अवस्था की स्वतंत्रता को ज्यों का त्यों बनाए रखना चाहती है और दूसरे में स्त्री बिल्कुल पुरुष की हो जाती है और बच्चों को जन्म देना ही उसका मुख्य कार्य बन जाता है।
स्त्रियां दो तरीकों के बीच अपनी पसंद चुनती है। एक के अनुसार, स्त्री अपनी किशोर अवस्था की स्वतंत्रता को ज्यों का त्यों बनाए रखना चाहती है और दूसरे में स्त्री बिल्कुल पुरुष की हो जाती है और बच्चों को जन्म देना ही उसका मुख्य कार्य बन जाता है।
स्वाभाविक रति क्रिया में स्त्री पुरुष के ऊपर अवलंबित रहती है। जिस प्रकार पशु जगत में नर पशु ही आक्रामक भूमिका ग्रहण करता है, उसी प्रकार मानव जगत में भी पुरुष ही आगे बढ़ता है। स्त्री उसके आलिंगन पाश में जकड़ जाती है। लिंग में तनाव का अनुभव करने पर ही पुरुष स्त्री को ग्रहण कर सकता है।
*** वीर्यपतन के पश्चात पुरुष अशांति और परेशान करने वाले स्रोतों से मुक्त हो जाता है। मानो उसे पूर्ण शांति मिलती है।
*** चूंकि स्त्री 'अन्या' है, इसलिए उसकी निष्क्रियता पुरुष की स्वाभाविक क्रिया में बाधक नहीं बन पाती है। स्त्री केवल समर्पण कर देती है। एक निष्क्रिय स्त्री शरीर के साथ भी संभोग संभव है, लेकिन पुरुष की इच्छा की तुष्टि होना इसका स्वाभाविक परिणाम है।
***
प्रथम संभोग: विश्वास भी जगा सकता है और हीन भावना भी
पुरुष के प्रेम की तीव्रता से स्त्री में विश्वास जाग्रत होता है और इससे सर्वदा उसका हित ही होता है। चाहे उसकी उम्र 80 साल हो जाए, वह अपने को एक रात पुरुष की इच्छा को संतुष्ट करनेवाली भग्यशाली ही समझती है।
प्रथम संभोग: विश्वास भी जगा सकता है और हीन भावना भी
पुरुष के प्रेम की तीव्रता से स्त्री में विश्वास जाग्रत होता है और इससे सर्वदा उसका हित ही होता है। चाहे उसकी उम्र 80 साल हो जाए, वह अपने को एक रात पुरुष की इच्छा को संतुष्ट करनेवाली भग्यशाली ही समझती है।
इसके विपरीत अनाड़ी प्रेमी या पति स्त्री में हीन भावना पैदा कर सकता है। ऐसी स्थिति में स्त्री की मानसिक अवस्था असंतुलित हो जाती है। वह विषाद से भरकर सेक्स के प्रति उदासीन और ठंडी हो जाती है।
कष्टप्रद प्रथम संभोग के कुछ उदाहरण
मनोचिकित्सक स्टेकल ने ऐसे अनेक उदाहरण प्रस्तुत किए हैं। एक स्त्री को कई वर्षों तक पीठ में दर्द होता रहा और वह ठंडी बनी रही क्योंकि विवाह की रात्रि में योनि क्षत के समय उसे बहुत दर्द हुआ था और पति ने उस पर धोखा देने का आरोप लगाया था। उसके कौमार्य पर शक किया था। दूसरे पति ने अपनी पत्नी के पैरों को मोटा व भद्दा कहा था, जिस कारण वह उसी समय ठंडी हो गई। यह 'ठंडापन' उसमें सारी उम्र बना रहा और उसके अंदर मानसिक विकार भी उत्पन्न हो गए। एक अन्य स्त्री ने बताया कि उसके पति ने किस प्रकार पाशविकता से योनिक्षत किया। ऐसे अनेक उदाहरण मिलते हैं
मनोचिकित्सक स्टेकल ने ऐसे अनेक उदाहरण प्रस्तुत किए हैं। एक स्त्री को कई वर्षों तक पीठ में दर्द होता रहा और वह ठंडी बनी रही क्योंकि विवाह की रात्रि में योनि क्षत के समय उसे बहुत दर्द हुआ था और पति ने उस पर धोखा देने का आरोप लगाया था। उसके कौमार्य पर शक किया था। दूसरे पति ने अपनी पत्नी के पैरों को मोटा व भद्दा कहा था, जिस कारण वह उसी समय ठंडी हो गई। यह 'ठंडापन' उसमें सारी उम्र बना रहा और उसके अंदर मानसिक विकार भी उत्पन्न हो गए। एक अन्य स्त्री ने बताया कि उसके पति ने किस प्रकार पाशविकता से योनिक्षत किया। ऐसे अनेक उदाहरण मिलते हैं
loading...
0 टिप्पणियाँ: